ऋग्वेद संहिता ॥ अथ प्रथमं मण्डलम् ॥ सूक्त - 3
- Destination Europe
- Added by Admin
- May 06, 2023
[ऋषि-मधुच्छन्दा वैश्वामित्र देवता-१-३ अश्विनीकुमार, ४-६ इन्द्र, ७-९ विश्वेदेवा, १०-१२ सरस्वती
१९. अश्विना यज्वरीरिषो द्रवत्पाणी शुभस्पती पुरुभुजा चनस्यतम् ॥ १ ॥
हे विशालवा! शुभ कर्म करने वाले अश्विनीकुमारोहमारे द्वारा समर्पित हविष्यान्नों से आप भली प्रकार सन्तुष्ट हो ॥१ ॥
२०. अश्विना पुरुदंससा नरा शवीरया धिया । धिष्ण्या वनतं गिरः ॥ २ ॥
असंख्य कर्मों को सम्पादित करने वाले धैर्य धारण करने वाले, बुद्धिमान् हे अश्विनीकुमारो ! आप अपनी उत्तम बुद्धि से हमारी वाणियों (प्रार्थनाओं) को स्वीकार करे ॥२ ॥
२१. दस्त्रा युवाकवः सुता नासत्या वृक्तबर्हिषः । आ यातं रुद्रवर्तनी ॥ ३ ॥
रोगो को विनष्ट करने वाले सदा सत्य बोलने वाले रुद्रदेव के समान (शत्रु संहारक) प्रवृत्ति वाले, दर्शनीय हे अश्विनीकुमारो ! आप यहाँ आये और बिछी हुई कुशाओं पर विराजमान होकर प्रस्तुत संस्कारित सोमरस का पान करे ॥३
२२. इन्द्रा याहि चित्रभानो सुता इमे त्वायवः अण्वीभिस्तना पूतासः ॥ ४ ॥
अद्भुत मान् इन्द्रदेव अंगुलियों द्वारा सवित श्रेष्ठ युक्त यह सोमरस आपके निमित है। आप आये और सोमरस का पान करें ॥४॥
२३. इन्द्रा याहि थियेषितो विप्रजू सुतावतः। उप ब्रह्माणि वाघतः ॥ ५ ॥
हे इन्द्रदेव ! श्रेष्ठ बुद्धि द्वारा जानने योग्य आप सोमरस प्रस्तुत करते हुये ऋत्विजों के द्वारा बुलाये गये हैं। उनकी स्तुति के आधार पर आप यज्ञशाला में पधारें ॥५॥
२४. इन्द्रा याहि तूतुजान उप ब्रह्माणि हरिवः सुते दधिष्व नश्चनः ॥ ६ ॥
अश्वयुक्त इन्द्रदेव! आप स्तवनों के श्रवणार्थ एवं इस यज्ञ में हमारे द्वारा प्रदत्त हवियों का सेवन करने के लिये यज्ञशाला में शीघ्र ही पधारे ॥६॥
२५. ओमाहार्षणीधृतो विश्वे देवास आ गत दाश्वांसो दाशुषः सुतम् ७ ॥
हे विश्वेदेवो! आप सबको रक्षा करने वाले सभी प्राणियों के आधारभूत और सभी को ऐश्वर्य प्रदान करने वाले हैं। अत: आप इस सोम युक्त हवि देने वाले यजमान के यज्ञ में पधारें ॥ ७ ॥
२६. विश्वे देवासो अप्तुरः सुतमा गन्त तूर्णयः। उता इव स्वसराणि ॥ ८ ॥
समय-समय पर वर्षा करने वाले हे विश्वेदेवो आप कर्म कुशल और द्रुतगति से कार्य करने वाले आप सूर्य-रश्मियों के सदृश गतिशील होकर हमें प्राप्त हो ॥८ ॥
२७ विश्वे देवासो अधि एहिमावासो अद्रुहः मेथं जुषन्त वह्नयः ॥ ९ ॥
हे विश्वेदेवो ! आप किसी के द्वारा बध न किये जाने वाले, कर्म-कुशल, द्रोहरहित और सुखप्रद हैं। आप हमारे यज्ञ में उपस्थित होकर हवि का सेवन करें ॥९
२८. पावका नः सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवती यज्ञं वष्टु धियावसुः १० ॥
पवित्र बनाने वाली, पोषण देने वाली बुद्धिमतापूर्वक ऐश्वर्य प्रदान करने वाली देवी सरस्वती ज्ञान और कर्म से हमारे यज्ञ को सफल बनाये ॥१० ॥
२९. चोदयित्री सूनृतानां चेतन्ती सुलीनाम् । यज्ञं दधे सरस्वती ॥। ११ ॥
सत्यप्रिय (वचन) बोलने की प्रेरणा देंन वाली, मेधावी जनों को यज्ञानुष्ठान की प्रेरणा (मति) प्रदान करने वाली देवी सरस्वती हमारे इस यज्ञ को स्वीकार करके हमें अभीष्ट वैभव प्रदान करें ॥ ११ ॥
३०. महो अर्णः सरस्वती प्र चेतयति केतुना। धियो विश्वा वि राजति ।। १२ ।।
जो देवी सरस्वती नदी-रूप में प्रभूत जल को प्रवाहित करती है। वे सुमति को जगाने वाली देवी सरस्वती सभी याजकों की प्रज्ञा को प्रखर बनाती हैं ॥१२॥
Recent Post
View AllThe Major Oak
The Major Oak is a large, ancient oak tree located in Sherwood Forest, Nottinghamshire, Engla...
What will happen to life if there are no Bees on earth
What Will Happen To Life If There Are No Bees On Earth And how we can save the bees by p...